बिहार में 40 सीटें हैं। पिछली बार 40 में से 39 सीटें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिताने के लिए जीती गई थीं। अबतक के हिसाब से 2025 में बिहार विधानसभा चुनाव होना है। अभी भारतीय जनता पार्टी विधानसभा में राष्ट्रीय जनता दल के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। लेकिन, अब आगे? बिहार में जाति आधारित जनगणना का प्रस्ताव भाजपा के सरकार में रहते पास हुआ था, लेकिन रिपोर्ट आते समय पार्टी विपक्ष में है और बाजी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पाले में।
मंगलवार को मास्टर स्ट्रोक के साथ नीतीश कुमार ने रही-सही कसर पूरी कर ली है। एक प्रस्ताव से उन्होंने अनारक्षित वर्ग के करीब पौने 11 करोड़ लोगों को साध लिया है तो दूसरी घोषणा से 10.85 लाख अगड़ों सहित 94.42 लाख गरीब परिवारों के लिए गेम प्लान बिछा दिया।
आरक्षण बढ़ाने के साथ एक लाइन से यह क्या कह दिया
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को बिहार विधानसभा में विपक्षी दल के सदस्यों को टोकाटोकी से रोकते हुए बार-बार कहा- “रुकिए, सुन तो लीजिए। सब हो रहा है।” हुआ भी। उन्होंने पहला तीर आरक्षण बढ़ाने की बात कहकर चला दिया। जिस दिन जाति आधारित जनगणना की रिपोर्ट आयी, तभी से माना जा रहा था कि आरक्षण बढ़ाया जाएगा। अगड़ी जातियों की संख्या इतनी कम आयी है कि आरक्षण बढ़ाने के फैसले के लिए बहुत हिम्मत की जरूरत भी नहीं थी। थोड़ी हिम्मत दिखानी थी, लेकिन मुख्यमंत्री ने पूरी हिम्मत दिखाई।
उन्होंने आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने का प्रस्ताव तो दिया ही, हिम्मत दिखाते हुए यह भी कह दिया कि 10 प्रतिशत तो ‘अपर कास्ट’ को पहले से आरक्षण मिल ही रहा है। मुख्यमंत्री ने सदन में अगड़ी जातियों को आर्थिक आधार पर मिले आरक्षण (EWS) की बात कही तो बाहर इसके खत्म करने तक की चर्चा होने लगी। वह खत्म तो नहीं करे शायद सरकार, लेकिन यह तय है कि सीएम का प्रस्ताव पास हो जाएगा। मतलब, अनारक्षित सीटें 40 प्रतिशत से घटकर 25 फीसदी रह जाएंगी। सरकार के इस फॉर्मूले को देखकर पिछड़ी जातियां खुश होंगी, क्योंकि आरक्षण में उनकी हिस्सेदारी बढ़ेगी और सवर्णों की घटेगी। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने भी कहा था कि “जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी”। यही होने वाला भी है।
94.42 लाख परिवारों को एक प्रस्ताव से साधा
आरक्षण बढ़ाने के प्रस्ताव के जरिए मुख्यमंत्री ने गैर-आरक्षित वर्ग के सभी वोटरों को साध लिया। लेकिन, उससे भी ज्यादा बड़ा दांव जातीय जनगणना में सामने आए 94 लाख 42 हजार 786 परिवारों को आर्थिक मदद के प्रस्ताव से खेला गया। जातीय जनगणना में छह हजार रुपये तक मासिक आय वाले परिवारों की यह संख्या है। कुल 2 करोड़ 76 लाख 68 हजार 930 परिवारों में से 34.13 प्रतिशत को गरीब माना गया है। इन गरीबों को 2 लाख रुपये की मदद किश्तों में दी जाएगी, ताकि वह अपना कोई रोजगार कर पाएं। सबसे बड़ी बात यह है कि इनमें से 10.85 लाख सामान्य वर्ग से हैं। इसमें सबसे ज्यादा संख्या ब्राह्मण परिवारों की है, जबकि सबसे ज्यादा प्रतिशत भूमिहारों का है। इसमें मुसलमानों की अगड़ी जाति शेख भी शामिल है। इन परिवारों को आर्थिक मदद की योजना चुनाव में तुरुप का पत्ता साबित हो सकती है।