पटना: बिहार की नीतीश सरकार ने तमाम राजनीतिक गहमागहमी के बीच सोमवार को बहुप्रतीक्षित जातीय आधारित गणना रिपोर्ट को जारी कर दिया।
इसके लिए नीतीश सरकार ने महात्मा गांधी की जयंती को चुना और महात्मा गांधी के जयंती के अवसर पर जातीय सर्वे रिपोर्ट जारी किया गया है।
जातीय गणना रिपोर्ट जारी होने के बाद बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है।
इस मामले में एक तरफ जहां सत्तारूढ़ दल अपनी सरकार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की वाहवाही कर रहे हैं तो दूसरी तरफ विपक्षी दल इस रिपोर्ट को लेकर हमलावर है।
वैश्य समाज में सर्वाधिक आबादी कानू + हलवाई की आई है जो की 2.82 परसेंट है। तेली भी 2.81%है । अन्य वैश्य (बनिया) की सभी उपजातियां को जोड़ कर भी 2.4 परसेंट है। कानू (हलवाई ),तेली को छोड़कर वैश्य समाज की सभी उपजातियों को मिला दिया जाए तो भी 3% परसेंट ही है। सोनार 0.68% है।
इस रिपोर्ट में बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा बताई गई है, जिसमें अत्यंत पिछड़ा वर्ग की संख्या 36 फ़ीसदी ,पिछला वर्ग की संख्या 27 फीसदी, अनुसूचित जातियों की संख्या तकरीबन 19 फ़ीसदी, यादव समुदाय की तकरीबन 14 फ़ीसदी, मुस्लिम समुदाय की संख्या तकरीबन 19 फ़ीसदी ,स्वर्ण जातियों की संख्या लगभग 16 फ़ीसदी एवं अन्य जातियों की भी गणना रिपोर्ट जारी की गई है।
अनारक्षित आबादी 15% है जिसमे बिहारी हिन्दू सवर्ण महज 10% हैं ।
इस मामले को लेकर जनता दल यूनाइटेड के प्रदेश प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा है की बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो कहते हैं वह करते हैं।
अब इससे देश को भी सीख लेनी चाहिए। वहीं उन्होंने जातीय आधारित गणना को लेकर पूर्व में हुई राजनीति को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा था और कहा कि केंद्र की मोदी सरकार यह नहीं चाहती थी लेकिन नीतीश कुमार ने यह कर दिखाया।
जबकि दूसरी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहां है कि सिर्फ जातीय आधारित गणना रिपोर्ट जारी करने से नहीं होगा। सरकार को इसमें किसका विकास हुआ इसकी गणना भी बताना चाहिए था। उधर पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने भी कहा कि अब राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा देने वालों को सोचना होगा और क्या इस जातीय आधारित गणना के बाद वह लोग जो परिवारवाद को राजनीति में बढ़ावा दे रहे हैं क्या उससे वंचित होंगे। जाहिर है जातीय आधारित गणना जारी होने के बाद इस पर राजनीति होना लाजमी है क्योंकि आने वाले समय में लोकसभा 2024 का चुनाव और विधानसभा 2025 का चुनाव होना है।
इसको लेकर तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने स्तर से प्रतिक्रिया देने में लगे हैं । अब देखना होगा कि आने वाले समय में जातीय आधारित गणना का बिहार सरकार कितना सदुपयोग करती है और विपक्षी दल जो इस रिपोर्ट को लेकर नीतिश सरकार पर निशाना साध रहे थे वह अपने मकसद में कितना कामयाब होंगे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या इससे आम जनता को लाभ पहुंचेगा, इस पर सब की निगाहें टिकी है।
Rajiv Mohan
Senior journalist
Janhit Voice