एक बार एक शिष्य को अपने गुरु के दर्शन की इच्छा जाग्रत हुई! गुरु की कुटीया जंगल में एक नदी के किनारे थी, जहाँ संकरे रास्ते से होते हुए नदी पार करते हुए जाना पड़ता था| एक दिन गुरु से मिलने की तीव्र इच्छा से शिष्य अपने गुरु से मिलने घर से चल पड़ा। पथरीले, संकरे रास्तों से होता हुआ वह जैसे तैसे नदी तक पहुंचा। अब समस्या यह थी की बिना नाव के नदी को कैसे पार किया जाए। नदी उसके मार्ग में बाधक बनना चाहती थी लेकिन उसे अपने गुरु पर अपार श्रद्धा थी। बस फिर क्या था, उसने आने गुरु का नाम लिया और पानी पर कदम रखते हुए उस पार पहुंच गया।
नदी के दुसरे किनारे पर ही गुरु की कुटीया थी। गुरु ने जैसे ही बहुत दिनों बाद अपने शिष्य को देखा उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। गुरु के दर्शन पाकर शिष्य गुरु के चरण स्पर्श के लिए निचे झुका ही था की गुरु ने शिष्य को बिच में ही उठाकर गले से लगा लिया। क्षण भर में ही गुरु का ध्यान भंग हुआ और उन्होंने आश्चर्य से शिष्य से पुछा – “वत्स, तुमने बिना नाव के इतनी गहरी नदी को पार कैसे किया ?
शिष्य ने गुरुवर को कुटिया तक पहुँचने की पूरी कहानी बता दी। अपने नाम में इतनी शक्ति होने का गुरुवर को अहसास न था। जब उन्होंने शिष्य की पूरी बात सुनी तो वे फुले न समाए। उन्होंने सोचा , “यदि मेरे नाम में इतनी शक्ति है तो में बहुत ही महान और शक्तिशाली हूँ। अब मुझे नदी पार करने के लिए नाव का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं”
अगले दिन गुरुवर ने जैसे ही नदी पार करने के लिए, मैं..मैं…मैं कहकर कदम बढाया, नदी में पाँव रखते ही वह डूबने लगे और देखते ही देखते उनका प्राणांत हो गया|
मित्रों” इसीलिए कहा गया है, अहंकार हमेशा हानिकारक होता है!