December 24, 2024 1:49 am

महिला आरक्षण बिल : आधी आबादी को अधिकार या आधी आबादी पर राजनीति

पटना: स्वतंत्र भारत के इतिहास में महिला आरक्षण बिल का अस्तित्व में आना एक ऐतिहासिक कदम है। संसद में सर्व सहमति से महिला आरक्षण बिल का पास हो जाना भी एक ऐतिहासिक क्षण के रूप में जाना जाएगा । महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद यह साफ हो गया है कि अब देश की आधी आबादी को भी राजनीति में लगभग पुरुषों के बराबर हकदारी मिल गई है। देश की राजनीति में इस ऐतिहासिक कदम के तहत आधी आबादी को 33 फ़ीसदी की हिस्सेदारी मिलने से देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में भारत की वाहवाही हुई है।

महिला आरक्षण बिल पास होना देश में रूढ़िवादी विचारधारा को मिटाने की दिशा में एक बड़ी कोशिश मानी जा रही है। महिला आरक्षण बिल संसद में पास होने के बाद भारत दुनिया के उस श्रेणी में आज खड़ा हुआ है जहां महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव की भावना नहीं होती।

महिला आरक्षण बिल के लागू हो जाने के बाद आने वाले समय में देश और राज्य स्तर पर महिलाओं को राजनीति में 33% की प्रतिनिधित्व देखी जा सकती है।

इसके साथ जिस तरह से अभी तक राजनीति में महिलाओं की भागीदारी कम देखी जाती थी। सरकारी आंकड़े के मुताबिक फिलहाल लोकसभा में महिलाओं की कुल सीटों का महज 14% ही है। जबकि राज्य स्तर पर है केवल 9% ही है।

अब सवाल उठता है कि क्या महिला आरक्षण बिल के अस्तित्व में आने से महिलाओं को उनका हक मिल गया है या आने वाला समय में मिल जाएगा।

इसको लेकर देश भर में बहस छिड़ी हुई है। यह तो नहीं कहा जा सकता है कि देश में वर्चस्ववादी पुरुष मानसिकता ने आसानी से महिला आरक्षण बिल को पास होने दिया। महिला आरक्षण बिल को अस्तित्व में आने में तकरीबन 27 साल लग गए। देश की अलग-अलग अलग-अलग तरीके से दावे करती है और सभी पार्टियों की अपनी-अपने दलील और प्रतिक्रियाएं हैं। परंतु बहस अब इस विषय पर नहीं है की महिला आरक्षण बिल की पहल किसने की और इसका विरोध किसने किया। महिला आरक्षण बिल के सामने अब बड़ी चुनौती इसे सही तरीके से धरातल पर उतारने की है। बड़ा सवाल यह है कि देश के दिग्गज राजनेता क्या वास्तव में महिला अधिकारों के पक्ष में रहे हैं या इस पर केवल राजनीति होती रही।देश में इस विषय पर बहस होना लाजमी है।


संसद में महिला आरक्षण बिल के पास हो जाने के बाद लगभग सभी दलों के राजनेताओं ने बड़े-बड़े बयान दिए और कहे कि इससे देश में महिलाओं को उनका हक दे दिया गया। लेकिन सच्चाई है कि पुरुषवादी विचारधारा के राजनेता इसे कतई लागू करना नहीं चाहते थे और यही कारण था कि इसे लागू करने में लगभग तीन दशक लग गए। महिला आरक्षण बिल पर हमेशा विरोधाभास रहा और तमाम राजनीतिक दल इस पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते रहे , इससे इंकार नहीं किया जा सकता। महिलाओं को अधिकार देने के नाम पर संसद में दिग्गज नेताओं के बयान से साफ हो गया था कि इस पर राजनीति की जा रही है। सभी को याद होगा की तत्कालीन कांग्रेस की सरकार के दौरान महिला आरक्षण बिल को राज्यसभा में पास कर लिया गया था लेकिन जब यह भी लोकसभा में आया तो किस तरह से हंगामा हुआ लोगों को आज भी याद है।

इस बिल का सबसे ज्यादा विरोध राष्ट्रीय जनता दल और सपा ने की थी। ऐसे राजनीतिक दलों का दलील था कि महिला आरक्षण बिल में अति पिछड़े वर्ग की महिलाओं को भी अलग से आरक्षण दिया जाना चाहिए और इसको लेकर संसद की कार्रवाई में जमकर हंगामा हुआ था और तब यह बिल पास नहीं हो सका था।

परंतु अब सवाल उठता है कि आखिर 2023 में महिला आरक्षण बिल बिना हंगामे के कैसे पास हो गया ! महिला आरक्षण बिल के नाम पर जो राजनीति शुरू हुई थी वह आज भी जारी है। संसद में जब बिल पर बहस हुई तो जो पार्टियां इस बिल का विरोध की थी वही पार्टियां उस तरह का विरोध नहीं कर सकी जिस तरह पहले किया गया था। और यही वजह रहा की संसद के दोनों सदनों में महिला आरक्षण बिल पास हो गया। परंतु महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद भी राजनीति कम नहीं हुई है। अब इस पर दावेदारी की बारी है, तो सबसे पहले भाजपा अपना दाव चली। भाजपा का दावा है कि उनके प्रयासों से महिला आरक्षण बिल लागू हुआ। यह ठीक है कि भाजपा के शासनकाल में महिला आरक्षण बिल लागू हुआ और यही कारण है कि भाजपा के तमाम नेता इसके लिए अपनी पार्टी और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खूब तारीफ कर रहे हैं।

महिला सशक्तिकरण

परंतु सवाल यह है कि जब लोकसभा 2024 का चुनाव सामने है तब यह बिल संसद के पटल पर क्यों लाया गया और क्यों इसे पास कराया गया।

जाहिर है देश की आधी आबादी पर भाजपा की नजर है और भाजपा इसे चुनाव में भुनाने की रणनीति से महिला आरक्षण बिल को संसद के पटल पर लायीं और समय की नजाकत को देखते हुए इसे पास करा लिया। विरोधी पार्टियां विरोध नहीं कर पाई क्योंकि चुनाव में सबको जाना है अगर कोई पार्टी इसका विरोध करती तो भाजपा इसे मुद्दा बनती और विरोधी पार्टियों को इसका जवाब देना पड़ता। इसलिए सभी दलों का समर्थन मिला और महिला बिल पास हो गया। परंतु राष्ट्रीय जनता दल जो इसका हमेशा से विरोध करता रहा उसके नेता और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने साफ-साफ कहा की महिला आरक्षण बिल में अगर अति पिछड़ी जाति से आने वाली महिलाओं को अलग से आरक्षण देने की व्यवस्था नहीं की जाती तो उनका विरोध जारी रहेगा। उन्होंने यहां तक कहा कि इसके लिए उनका दल ईट से ईट बजा देगा। तेजस्वी यादव का बयान गौर करने वाली है क्योंकि जब यह धरातल पर उठाया जाएगा तो राष्ट्रीय जनता दल एक बार फिर मुखर होकर इसका विरोध करेगी। जबकि कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी हो या जनता दल यूनाइटेड के सर्वेसर्वा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हो, किसी ने भी ऐसी तल्ख बयान नहीं दी है। बल्कि महिला आरक्षण बिल का पूरा समर्थन का इन लोगों ने पूरा समर्थन दिया है। यही नहीं इंडिया गठबंधन के भी तमाम नेताओं ने महिला आरक्षण बिल का समर्थन किया परंतु राष्ट्रीय जनता दल और सपा के विचार अभी भी वही है जो पूर्व में था। इसलिए महिला आरक्षण बिल को धरातल पर उतरने में कई पेच फंसे हैं। परंतु जानकारों का कहना है कि चाहे जितना भी विरोध हो लेकिन महिला आरक्षण बिल का मामला वहां तक पहुंच गया है जहां इसके खिलाफ विरोध का असर बहुत नहीं होगा।

दूसरा विषय है की महिला आरक्षण बिल को लेकर विपक्ष के साथ भाजपा ने एक बड़ा दाव खेला और महिला वोटरों को आकर्षित करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने महिला आरक्षण बिल पास करवाने में सफलता प्राप्त कर ली लेकिन जब बिल का प्रारूप सामने आया तो उसमें कह दिया गया कि यह बिल तब लागू होगा जब देश की जनगणना और परिसीमन का काम पूरा हो जाएगा।

इससे साफ है कि भाजपा की भी मनसा साफ नहीं है ,भाजपा भी की निगाह महिला वोटरों पर है इसीलिए महिला आरक्षण बिल को पास तो कर दिया गया लेकिन इसे 2024 में लागू करने को लेकर पेच फंसा दिया गया। केंद्र की मोदी सरकार इस पेच को विपक्षी दलों ने भांप लिया और तब विपक्षी दलों ने भाजपा पर करा प्रहार किया।

विपक्षी दलों के नेताओं ने साफ-साफ कहा कि यदि महिला आरक्षण बिल को 2024 के लोकसभा चुनाव में लागू नहीं किया जाना था तो इसे अभी क्यों पास कराया गया।

इस सवाल पर भाजपा बैक फुट पर लेकिन भाजपा को लगता है कि विपक्षी दलों का यह सवाल जनता के बीच में बहुत असर नहीं करेगा और वह अपने मकसद में कामयाब रहा।

भाजपा को लगता है कि उनके इस ऐतिहासिक पहल से देश में क्रांति आएगी और उस क्रांति का लाभ सीधे-सीधे भाजपा को जाएगा।

लेकिन किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर देश में चेतना और जागरुकता आएगी तो वहां साजिश और राजनीति का कोई अस्तित्व नहीं होगा। वास्तव में अगर महिलाएं जागरूक हो गई और उनके बीच चेतना आ गई तो वह अपना हक लेकर रहेगी । और जो लोग इसको राजनीति के चश्मे से देख रहे हैं उनको परास्त होना पड़ेगा। लेकिन इसके लिए देश की महिलाओं को अपने विचारों में परिवर्तन करके देखना होगा, केवल लोक लुभावन बातों से नहीं बल्कि उसकी हकीकत की कसौटी पर उतरकर यदि देश की महिलाएं 33 फ़ीसदी आरक्षण के साथ देश की राजनीति में अपनी प्रतिनिधित्व का प्रभुत्व कायम करने में सफल होती है तो निश्चित तौर पर यह भी एक ऐतिहासिक कदम होगा और देश की महिलाएं दुनिया भर में सबके लिए मिसाल बनेगी।

Rajiv Mohan

वरिष्ठ पत्रकार

janhitvoice
Author: janhitvoice

janhit voice
dental clinic

Share this post:

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

Weather Data Source: wetter morgen Delhi

राशिफल