January 10, 2025 1:17 am

जिसकी “जितनी संख्या उतनी हिस्सेदारी” का फार्मूला सभी दलों के लिए होगा चुनौतीपूर्ण

पटना: जातीय गणना रिपोर्ट जारी होने के बाद से ही राजनीतिक बवेला थमा नहीं है। इस मसले पर पक्ष विपक्ष में विरोधाभास का होना इस बात के साथ संकेत हैं की जातीय गणना रिपोर्ट का केंद्र बिंदु राजनीति करना है जबकि कहा जा रहा था जातीय सर्वे राजनीति से परे होगा और जातीय गणना से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर राज्य में आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछले वर्गों के लिए विशेष जन कल्याण नीति बनाई जाएगी।

जातीय गणना रिपोर्ट: यह तो होना ही था

लेकिन जातीय गणना रिपोर्ट जैसे ही जारी हुआ उसी दिन से राजनीति शुरू हो गई। इसलिए यह कहा जा सकता है की जातीय गणना रिपोर्ट एक हथकंडा है और राजनीतिक दलों का असली मकसद इस पर राजनीति करना है। नेताओं के चाल चरित्र और बयानबाजी से साफ हो गया कि यह तो होना ही था।



जातीय गणना रिपोर्ट जारी करने के लिए नीतिश सरकार ने एक विशेष अवसर को चुना।

यानी जिस दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन मनाया जाता है उसी 2 अक्टूबर को नीतिश सरकार ने जातीय गणना रिपोर्ट जारी कर अपना पहला राजनीतिक मकसद साधने की कोशिश की। जब जातीय गणना करने का मामला अदालत में चल रहा था तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह कहा था की जातीय गणना करने का मकसद राज्य के आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछले वर्गों के उत्थान के लिए विशेष जन कल्याणकारी नीतियां बनाना है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बयान का समर्थन जदयू के साथ-साथ राजद और कांग्रेस के नेताओं ने भी की थी। लेकिन जैसे ही जातीय गणना रिपोर्ट जारी हुआ वैसे ही महागठबंधन के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने यह कह दिया की जिसकी जितनी संख्या उसकी उतनी हिस्सेदारी यानी जिसकी पहले से उम्मीद जताई जा रही थी वही तथ्य सामने आ गया। लालू प्रसाद का यह बयान साबित कर दिया की जाति आधारित गणना का असली मकसद क्या है। लालू प्रसाद के बयान के बाद इस मसले पर राजनीति तेज हो गई।

विभिन्न पार्टियों में अपने वर्गों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले सभी नेता अपने संख्या के हिसाब से राजनीति में दावा ठोकने लगे हैं। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि जातीय गणना रिपोर्ट से पहले जो यह दावा किया जा रहा था की जनकल्याणकारी नीतियां बनेगी लेकिन उसके नाम पर कोमो बेस राजनीति ही हो रही है
परंतु जातीय गणना रिपोर्ट पर अपनी राजनीति चमकने वाले नेताओं के सामने असली पचरा आंकड़ों के विश्वसनीय को लेकर है। विपक्षी दल ही नहीं महागठबंधन के कई नेता भी अंदर-अंदर जातीय गणना की रिपोर्ट पर संतुष्ट नहीं है। इसका बड़ा उदाहरण जदयू के प्रदेश महासचिव प्रगति मेहता का बयान है। प्रगति मेहता ने कहा कि जातीय गणना रिपोर्ट के आंकड़ों को पुनः जांच करना उचित होगा। दरअसल प्रगति मेहता धानुक समाज से आते हैं और उनका कहना है कि जो धानुक समाज का आंकड़ा पेश किया गया है वह विश्वसनीय नहीं है। उनका दावा है कि रिपोर्ट में धानुक समाज की संख्या कम दिखाई पड़ रही है। उधर विपक्षी दल यानी भाजपा लगातार इस बात पर कायम है कि नीतीश सरकार ने जातीय आधारित गणना रिपोर्ट को जारी करने में जल्दी बाजी की जिसके चलते जो आंकड़े पेश किए गए हैं वह विश्वसनीय नहीं है।

भाजपा के फायर ब्रांड नेता और केंद्रीय राज्य मंत्री गिरिराज सिंह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद रवि शंकर प्रसाद समेत भाजपा के कई नेताओं ने नीतीश सरकार द्वारा जारी जाति आधारित गणना रिपोर्ट के आंकड़ों पर सवाल खड़ा करते हुए इस आंकड़े को नकली करार दिया है।।
इतना ही नहीं जातीय आधारित गणना रिपोर्ट जारी होने के बाद अब यह सवाल उठने लगा है की विभिन्न दल अपने पार्टी के अंदर संख्या के हिसाब से कब तक प्रतिनिधित्व देने को राजी होती है अगर ऐसा हुआ तो सभी दलों के पार्टी पदों के रूपरेखा बदल जाएगी।
सरकार में भी जिसकी जितनी संख्या उतनी उसकी हिस्सेदारी के फार्मूले पर मंत्रिमंडल का बंटवारा किए जाने की मांग उठ रही है। लेकिन इस पर अभी सत्तारूढ़ दल चुप है।

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परंतु आने वाले 2024 लोकसभा का चुनाव और 2025 विधानसभा का चुनाव अहम होगा।
सत्तारूढ़ दल हो या विपक्षी दल सभी के लिए सीट शेयरिंग का फार्मूला चुनौती पूर्ण होगा। यदि सभी दल जातीय गणना रिपोर्ट के आधार पर सीटों का बंटवारा करती है तो क्षेत्र में सभी दलों का प्रतिनिधित्व बदल जाएगा। परंतु यह काम इतना आसान नहीं है इसको लेकर सभी दलों में घमासान होगा इससे इनकार नहीं किया जा सकता। आने वाले समय में अब यह देखना दिलचस्प होगा की जातीय गणना को लेकर जिस तरह से महागठबंधन की सरकार ने उत्साह दिखाया उसे प्रकार से अपने पार्टी के अंदर संभावित घमासान पर कैसे काबू पा सकेगा।

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Author: janhitvoice

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