28 सितंबर से शुरू हो रहा है मेला, 17 दिवसीय पितृपक्ष मेला इस बार 28 सितंबर से शुरू हो रहा है । इस मेले का समापन 15 अक्टूबर को होगा । अलग-अलग तिथियां को अलग-अलग विधि स्थलों पर पिंडदान श्राद्ध कम और तर्पण का विधान है , पिंडदान का कर्मकांड कर रहे पंडित के अनुसार गया श्राद्ध में मुंडन कर्म का निषेध माना गया है, उन्होंने कहा कि वायु पुराण में बात कही गई है । गया पितृपक्ष मेला, पितृपक्ष मेला, तर्पण, श्राद्ध कर्म, गया जी, पितृ पक्ष मेला।
पितृ पक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूरी विधि विधान से अनुष्ठान किए जाते हैं।
पितृ पक्ष में किए गए तर्पण से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और घर में हमेशा सुख शांति बनी रहती है। शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध के अनुष्ठानों का कराई से पालन किया जाना चाहिए। इस बार पितृपक्ष 29 सितंबर से शुरू होकर 14 अक्टूबर को समाप्त होंगे।
भगवान विष्णु की पावन नगरी गया जी यानी मोक्ष धाम में पितरों को पिंडदान की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है, जहां पर देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति की कामना को लेकर पिंडदान श्राद्ध कम और तर्पण का कर्मकांड संपन्न कर रहे हैं। नारद पुराण वायु पुराण सहित कई अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथो में इसका उल्लेख भी वर्णित है वैसे तो यहां सालों भर पिंडदान के लिए देश-विदेश के लोग आते रहे हैं लेकिन विशेष कर आश्विन मास में 17 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पितृपक्ष में लेकर आयोजन सालों से होता आ रहा है।
पितरों की आत्मा की मुक्ति और शांति के लिए शुक्रवार से एक पखवाड़े तक चलने वाले पितृपक्ष में गया में भारी भीड़ रहेगी।।भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से आरम्भ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलने वाले एक पखवाड़े का पितृपक्ष पर मोक्षदायिनी फल्गु नदी के तट पर पिंडदान और तर्पण से गुलजार रहेगा। पितृपक्ष में श्राद्ध और पिंडदान से पूर्वजों को मोक्ष मिलने की पौराणिक अवधारणा रही है। मान्यता है कि गया में पिंडदान करने से पितरों को शांति मिल जाती है।