जब एक महीने तक विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया दिल्ली में धरना प्रदर्शन पर बैठे, तो कभी रोते हुए, कभी सहजता से, बार-बार ‘डर’ का ज़िक्र किया.
यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की क़ीमत का, अपने करियर के ख़त्म होने का और यहां तक कि अपनी जान जाने का ‘डर’.
महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के कई मामलों पर काम कर चुकीं सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा, “नाबालिग समेत सभी महिलाओं के ब्यौरों में उनके उत्पीड़न के लिए बार-बार ताक़त और सत्ता के ग़लत इस्तेमाल का उल्लेख है जो आईपीसी और पॉक्सो दोनों के तहत अपराध की श्रेणी में आता है.”
कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी के सांसद बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ एक नाबालिग समेत सात महिला पहलवानों ने दो एफ़आईआर दायर कराई थी.
एफ़आईआर में सिंह के अलावा, कुश्ती महासंघ के कई पहलवानों ने उनके साथ काम कर रहे एक और वरिष्ठ सदस्य के ख़िलाफ़ उत्पीड़न में ‘अबेटमेंट’ यानी साथ देने का आरोप लगाया है.
बृजभूषण शरण सिंह और उस सदस्य ने सभी आरोपों से इनकार किया है.
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंग के मुताबिक, “एक व्यक्ति के ख़िलाफ़ कई महिलाओं की शिकायतें और उनमें एक तरह का पैटर्न उभर कर आना, उस व्यक्ति के चरित्र के बारे में बताता है. साथ ही शिकायतकर्ताओं के आरोपों को विश्वसनीयता भी देता है.”
ये दो एफ़आईआर महिला पहलवानों के थाने जाने पर नहीं, बल्कि उनके सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने और कोर्ट के दिल्ली पुलिस को नोटिस दिए जाने के जवाब में दायर हुईं.
एफ़आईआर में सभी शिकायतकर्ताओं ने जनवरी-फ़रवरी के दौरान ‘ओवरसाइट कमेटी’ द्वारा की गई जांच पर भी सवाल उठाए हैं और ‘डर’ जताया है कि ‘वो निष्पक्ष नहीं होगी.’