PATNA : बिहार के शिक्षा विभाग के सचिव बैद्यनाथ यादव की ओर से प्रेषित इस पत्र में कहा गया है कि राज्य सरकार सालाना विश्वविद्यालयों को 4000 करोड़ रुपए देती है, लिहाजा शिक्षा विभाग को विश्वविद्यालयों को उनकी जिम्मेदारी बताने, पूछने का पूर्ण अधिकार है कि वे इस राशि का कहां और कैसे इस्तेमाल कर रहे हैं। विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 4 और 5 में स्पष्ट प्रावधान है कि जिम्मेदार अधिकारियों को हॉस्टल, कॉलेजों आदि का नियमित इंस्पेक्शन कराना है। समय पर परीक्षाएं करानी है। इस बिंदू पर जब विश्वविद्यालय फेल करेंगे तो राज्य सरकार का हस्तक्षेप लाजिमी है क्योंकि वह करदाताओं, छात्रों के प्रति जिम्मेदार है।
बिहार के शिक्षा विभाग में जबसे एसीएस केके पाठक की इंट्री हुई है। तबसे लगातार कड़े फैसले लिए जा रहे हैं। अब स्थिति यह है कि बीआरए बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के कुलपति और प्रतिकुलपति के वेतन रोकने को लेकर उन्होंने सीधे-सीधे राजभवन से ही पंगा ले लिया है। जहां राजभवन ने वेतन रोके जाने के आदेश को वापस लेने के लिए कहा था। वहीं अब शिक्षा विभाग ने साफ कर दिया है कि वह अपना आदेश वापस नहीं लेंगे। विभाग ने राजभवन को भेजे पत्र में बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम-1976 का हवाला दिया है। पूछा है कि इस अधिनियम की किस धारा में विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता परिभाषित है और लिखा है कि विश्वविद्यालय स्वायत्त संस्थान हैं।
सचिव का पत्र बता रहा कि राजभवन और सरकार के बीच तनातनी कायम है। 17 अगस्त को राज्यपाल के प्रधान सचिव आर एल चोंग्थू ने शिक्षा विभाग के सचिव को पत्र लिख कर बीआरए बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के कुलपति और प्रतिकुलपति के वेतन रोकने और उनके वित्तीय अधिकार पर पाबंदी लगाने को गलत बताया था।
राजभवन ने कहा था कि यह कुलाधिपति के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण है। राजभवन ने शिक्षा विभाग को कहा था कि कुलपति और प्रतिकुलपति के वेतन रोकने का आदेश वापस लिया जाए। इसी पत्र के जवाब में शिक्षा विभाग की ओर से राजभवन को जवाब भेजा गया है। विभाग ने वेतन रोकने के अपने आदेश वापस लेने से इनकार कर दिया है।
ऐसा नहीं है कि राजभवन के साथ विश्वविद्यालयों को लेकर पहली बार इस तरह के विवाद सामने आए हैं। इससे पहले मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति के खिलाफ हुई छापेमारी को लेकर भी तत्कालिक शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने नाराजगी जाहिर की थी। उस समय राजभवन ने कुलपति पर कार्रवाई करने में ढूलमूल रवैया अपनाया था। जिसकी विजय कुमार चौधरी ने खुलकर आलोचना की थी